कहा कहौं इन नैंननि की बात
कहा कहौं इन नैंननि की बात |
ये अलि प्रिया बदन अम्बुज रस अटके अनत न जात।।
जब जब रुकत पलक सम्पुट लट अति आतुर अकुलात |
लंपट लव निमेष अंतर ते अलप-कलप सत सात ||
श्रुति पर कंज दृगंजन कुच बिच मृग मद है न समात |
(जै श्री ) हित हरिवंश नाभि सर जलचर जाँचत साँवल गात ||
Hindi Translation:
श्री लालजी अपनी प्रिय सखी हित सजनी से कहते है - सखी, मैं अपने इन नयनों की क्या बात कहूँ ? ये मेरे नयन भ्र्मर श्रीप्रिया मुख कमल के रस में अटक कर अब अन्यत्र कहीं जाते ही नहीं। जब जब कभी ये नयन पलक सम्प...
Raag:
Gaurī
Vaani:
श्री हित चौरासी जी