अति नागरि वृषभानु किसोरी
अति नागरि वृषभानु किसोरी।
सुनि दूतिका चपल मृगनैंनी, आकरषत चितवत चित गोरी।।
श्रीफ़ल उरज कंचन सी देही, कटि केहरि गुन सिंधु झकोरी।
बैंनी भुजंग चंद्र सत वदनी, कदलि जंघ जलचर गति चोरी।।
सुनि ‘हरिवंश’ आजु रजनी मुख , बन मिलाइ मेरी निज जोरी।
यद्पि मान समेत भामिनी , सुनि कत रहत भली जिय भोरी।।
Hindi Translation:
(श्रीलालजी ने कहा-) हे दूतिके !सुन; वृषभानु किशोरी अत्यन्त चतुर है, जब वह चपल मृगलोचनि गोरी अपने मनोहर नेत्रों से अवलोकन करती है तो मानो उसी क्षण-देखते ही चित्त का आकर्षण कर लेती है। उस नागरी की देह प...
Raag:
Sāraṃga
Vaani:
श्री हित चौरासी जी