प्रीति की रीति रँगीलोइ जानै
प्रीति की रीति रँगीलोइ जानै।
जछपि सकल लोक चूड़ामनि दीन अपनपौ माने।।
जमुना पुलिन निकुंज भवन में मान मानिनी ठानै।
निकट नवीन कोटि कामिनि कुल धीरज मनहिं न आनै।।|
नस्वर नेह चपल मधुकर ज्यौं आँन आँन सौं बानै।
( जै श्री ) हित हरिवंश चतुर सोई लालहिं छाड़ि मैंड़ पहिचानै।।
Hindi Translation:
प्रीति की रीति तो केवल रँगीले गीले (प्रेमी) श्रीलालजी ही जानते हैं, अन्य कोई नहीं; तभी तो वे समस्त लोकों के अधिनायक-सिर मौर होकर भी अपने आप को (प्रेम परवश) दीन (लघु) मानते है। जब यमुना पुलिन पर निकुञ्...
Raag:
Sāraṃga
Vaani:
श्री हित चौरासी जी