काहे कौं मान बढ़ावतु है
काहे कौं मान बढ़ावतु है, बालक मृग - लोचनि ।
हौंब डरनि कछु कहि न सकति, इक बात सँकोचनि ॥
मत्त मुरली अन्तर तव गावत, जागृत सैंन तवाकृति सोचनि ।
(जैश्री) हित हरिवंश महा मोहन पिय आतुर, विट विरहज दुख मोचनि ॥
Hindi Translation:
मानवती श्रीराधा के मान मोचन के लिये उनको विदग्धता पूर्वक समझाती हुई श्री हित सजनी कहती हैं “हे मृगछौना जैसे भोले एवं रसीले नेत्र वाली (श्रीप्रिया) मान का विस्तार क्यों कर रही हो ?” मैं इस समय भय से और...
Raag:
Kānharau
Vaani:
श्री हित चौरासी जी