प्रात समै दोऊ रस लंपट
प्रात समै दोऊ रस लंपट,
सुरत जुद्ध जय जुत अति फूल।
श्रम-वारिज घन बिंदु वदन पर
भूषन अंगहिं अंग विकूल॥
कछु रह्यौ तिलक सिथिल अलकावलि,
वदन कमल मानौं अलि भूल।
(जै श्री) हित हरिवंश मदन रँग रँगि रहे,
नैंन बैंन कटि सिथिल दुकूल॥
Hindi Translation:
भावार्थ - प्रातः काल दोनों रस लम्पट सुरत-युद्ध में विजय एवं प्रसन्नता पूर्वक संलग्न हैं। मुख पर श्रम वारि (प्रस्वेद) की सघन बूँदें शुभ्र मौक्तिक जैसी शोभित हैं एवं समस्त अङ्ग प्रत्यङ्गों के आभरण अस्त...
Raag:
Vibhāsa
Vaani:
श्री हित चौरासी जी