नंद के लाल हरयौं मन मोर
नंद के लाल हरयौं मन मोर ।
हौं अपने मोतिनु लर पोवति, काँकरी डारि गयो सखि भोर ।।
बंक बिलोकनि चाल छबीली, रसिक सिरोमनि नंद किसोर ।
कहि कैसें मन रहत श्रवन सुनि, सरस मधुर मुरली की घोर ।।
इंदु गोबिंद वदन के कारन, चितवन कौं भये नैंन चकोर ।
(जै श्री ) हित हरिवंश रसिक रस जुवती तू लै मिलि सखि प्राण अँकोर ।।
Hindi Translation:
श्रीप्रियाजी ने कहा- “ सखि ! नन्द नन्दन ने तो मेरा मन हर लिया है । मैं अपने भवन में बैठी मुक्ता माल पिरो रही थी उन्होंने सबेरे सबेरे मुझ पर काँकरी फेंक कर मेरी तन्मयता भंग करके अपनी ओर आकृष्ट कर लिया ...
Vaani:
श्री हित चौरासी जी