नैंननिं पर वारौं कोटिक खंजन
नैंननिं पर वारौं कोटिक खंजन ।
चंचल चपल अरुन अनियारे, अग्रभाग बन्यौ अंजन ।।
रुचिर मनोहर वक्र विलोकनि, सुरत समर दल गंजन ।
(जै श्री) हित हरिवंश कहत न बनै छबि, सुख समुद्र मन रंजन ।।
Hindi Translation:
( हे राधे ! तुम्हारे ) नयनों पर मैं कोटि कोटि ख़ंजनों को भी न्यौछावर कर दूँ । ( कितने सुन्दर हैं तुम्हारे नयन ? ) चंचल हैं , अत्यन्त चपल हैं , अरुण है और अनियारे – कोर दार भी । तिस पर उनके अग्र भाग मे...
Raag:
Dhanāśrī
Vaani:
श्री हित चौरासी जी