बैठे लाल निकुंज भवन
बैठे लाल निकुंज भवन ।
रजनी रुचिर मल्लिका मुकुलित त्रिविध पवन ।।
तूँ सखी काम केलि मन मोहन मदन दवन ।
वृथा गहरु कत करति कृसोदरी कारन कवन ।।
चपल चली तन की सुधि बिसरी सुनत श्रवन ।
(जै श्री) हित हरिवंश मिले रस लंपट राधिका रवन ।।
Hindi Translation:
श्री हित सखी ने फिर कहा- “ हे मानिनि [श्री राधे] ! लाल ( तुम्हारी प्रतीक्षा करते हुए ) निकुञ्ज भवन में बैठे हैं । ( इस समय ) कैसी सुन्दर रुचि दायक रात्रि है , मल्लिकाएँ खिल रही हैं और शीतल , सुगन्धित ...
Raag:
Sāraṃga
Vaani:
श्री हित चौरासी जी