वन की लीला लालहिं भावै
वन की लीला लालहिं भावै ।
पत्र प्रसून बीच प्रतिबिंबहिं नख सिख प्रिया जनावै ।।
सकुच न सकत प्रकट परिरंभन अलि लंपट दुरि धावै ।
संभ्रम देति कुलकि कल कामिनि रति रन कलह मचावै ।।
उलटी सबै समझि नैंननि में अंजन रेख बनावै ।
(जै श्री) हित हरिवंश प्रीति रीति बस सजनी स्याम कहावै ।।
Hindi Translation:
श्रीलालजी को वन की लीला बड़ी प्यारी लगती है, तभी तो उन्हें वहाँ के फूल पत्तों पर पड़े हुए प्रति बिम्बों में भी नख सिख प्रिया रूप ही ज्ञात होता रहता है । वे ( पत्र प्रसूनों के प्रतिबम्ब पर प्रकट प्रिय...
Raag:
Sāraṃga
Vaani:
श्री हित चौरासी जी