तेरे नैंन करत दोऊ चारी
तेरे नैंन करत दोऊ चारी ।
अति कुलकात समात नहीं कहुँ मिले हैं कुंज विहारी ॥
विथुरी माँग कुसुम गिरि गिरि परैं, लटकि रही लट न्यारी ।
उर नख रेख प्रकट देखियत हैं, कहा दुरावति प्यारी ॥
परी है पीक सुभग गंडनि पर, अधर निरँग सुकुमारी ।
(जै श्री) हित हरिवंश रसिकनी भामिनि, आलस अँग अँग भारी ॥
Hindi Translation:
[हे राधे !] तेरी दोनों आँखें ही तो चारी (चुगल खोरी) कर रही हैं, बता रही हैं ! कितनी प्रसन्न है ये ? इनकी प्रसन्नता मानो कहीं समाती नहीं [इसी से विदित होता है कि तुझे कहीं न कहीं कुञ्ज बिहारी] (श्रीलाल...
Raag:
Dhanāśrī
Vaani:
श्री हित चौरासी जी