अधर अरुन तेरे कैसे कै दुराऊँ
अधर अरुन तेरे कैसे कै दुराऊँ ।
रबि ससि संक भजन कियौ अपबस
अद्भुत रंगनि कुसुम बनाऊँ ॥
शुभ कौशेय कसि ब कौस्तुभ मणि
पंकज सुतनि लै अँगनि लिपाऊँ ।
हरषित इंदु तजत जैसे जलधर
सो भ्रम ढूंढि कहाँ हौं पाऊँ ॥
अंबुन दंभ कछू नहि ब्यापत
हिमकर तपै ताहि कैसै कै बुझाऊँ ।
हित हरिबंश रसिक नवरँग पिय
भृकुटी भौंह तेरे षंजन लराऊँ ॥
Hindi Translation:
(हित सखि ने कहा -) हे रसिक वर लाल ! आपके अत्यन्त अरुण अधरों का राग किस प्रकार छिपाऊँ ? यदि मैं कदाचित् उन अधरों की अद्भुतता कुसुम रंगों से रंजित करूँ तो भी मुझे रवि शशि रूप प्रेम की आशङ्का है । (अर्थ...
Vaani:
श्री हित चौरासी जी