खंजन मीन मृगज मद मेंटत
खंजन मीन मृगज मद मेंटत,
कहा कहौं नैननिं की बातैं ।
सुनी सुंदरी कहाँ लौं सिखईं,
मोहन बसीकरन की घातैं ॥
बंक निसंक चपल अनियारे,
अरुन स्याम सित रचे कहाँ तैं ।
डरत न हरत परायौ सर्वसु,
मृदु मधुमिव मादिक दृग पातैं ॥
नैंकु प्रसन्न दृष्टि पूरन करि,
नहिं मोतन चितयौ प्रमदा तैं ।
(जै श्री) हित हरिवंश हंस कल गामिनि,
भावै सो करहु प्रेम के नातैं ॥
Hindi Translation:
हे प्रिया, मैं तुम्हारे नेत्रों की बात क्या कहूँ ? यह अपनी चंचलता से खंजन का, तिरछी गति से मीन का, और भोलेपन से मृगछोना का मद चूर चूर कर रहे हैं । सुनो सुन्दरि ! यह बताओ कि तुमने इन नेत्रों से (इनकी ...
Raag:
Kānharau
Vaani:
श्री हित चौरासी जी